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कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है ...

  कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है , की मेरे जीवन की वजह क्या है | क्यों फंस गयी में इस मोह-माया में , काश होती मैं कोई पंछी तो उड़ती मस्त गगन में | लोग क्या कहेंगे इस डर से दूर, तय करती अपनी मंज़िल अपने दम  से।  कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है , की भाषा भी कैसी अजीब सी पहेली है, अपने ही सुर में शब्दों को पिरोती है , फिर क्यों यह शब्द कम पड़ जाते हैं, बहुत कुछ कहने को होते हुए भी, लब खुल नहीं पाते हैं। कभी कभी मेरे दिल में खयाल  आता है, की दुनिया में शुरू कैसी यह दौड़ है , हर किसी में अव्वल आने की होड़  है | पर मुझे तो यह खेल खेलना ही नहीं था , क्यूंकि जीतने की अफरा-तफरी में, हम रास्तों को भूल जाते हैं, फिर बादमें बीते पलों को याद करके पछताते हैं। कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है, की रिश्तों की डोर इतनी  नाज़ुक़ क्यों है, हलके से झटके से ही टूट जाती है,  जोड़ने की कोशिश फिर व्यर्थ ही जाती है|  पर फिर भी हम समझ नहीं पाते हैं , और अंत में पछताते हैं |   कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है,   की जीवन की वजह ढूंढने की जरूरत क्या है | ख़ुशी तो मिल ही जाती है, ढंडी हवा के झोंको से भी , चिड़ियों की चहचहा

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